संत श्री बलराम दास जी महाराज

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जन्म 07 दिसम्बर 1911,पुण्यतिथि 16 जुलाई 2008

श्री राम,जय राम,जय जय राम


महाराज श्री का उक्त विजय मंत्र श्री बलराम सत्संग मंडल जयपुर का है।महाराज श्री की मौजूदगी में ही नेमिषारण्य में बलराम धर्मशाला भवन बना ।आज यहाँ 20-25 भागवत कथाओं का आयोजन प्रतिवर्ष हो रहा है।ऐसे अनेक आश्रम और धर्म पताका फहराने में आपका योगदान खण्डेलवाल समाज को गौरवान्वित करता है।


जीवन परिचय - राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगर जयपुर के रमणीय अंचल एक छोटे से गाँव पड़ासोली जो दौसा से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, में खण्डेलवाल वैश्य खटोड़िया गोत्र दम्पती ( श्री लक्ष्मीनारायण और श्रीमती भूरी देवी) के घर में संवत् 1968 की पोष बुदी द्वितीया, दिनांक 07दिसम्बर 1911 गुरुवार, शुभ नक्षत्र में चौथी संतान के रूप में पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम बद्रीनारायण रखा गया। बद्रीनारायण ही रामभक्त बलरामदास जी महाराज के रूप में विख्यात हुए। इनका अवतार महंत श्री सीताराम दास जी महाराज के वरदान फ्लस्वरूप जन्म स्थल (पड़ासोली) में हुआ ।


इस सेजुड़ी कहानी भी अत्यन्त मार्मिक है। श्री लक्ष्मीनारायण व श्रीमती भूरी देवी के दाम्पत्य जीवन को सुवासित करने के लिए प्रथम संतान के रूप में एक पुत्री ने जन्म लिया । लेकिन दुर्भाग्य विधाता की मर्जी से वह पुत्री जन्म के बारह माह बाद ही छिन गई । दम्पती के दाम्पत्य जीवन रूपी लता पर लगी पहली ही कली विकसित होने से पूर्व ही झड गई । प्रथम संतान के शैशव काल में ही छिन जाने से इस दम्पती के जीवन में जैसे घोर अंधकार छा गया। वे निराशा के अंधकार में डूब गए।


अतिशय वैभव सम्पन्न जीवन होने के बावजूद संतान- विहीन जीवन उन्हें नीरस लगता था। तथापि श्री लक्ष्मीनारायण जी का एक नित्य नियम था कि वे अपने गाँव में स्थित श्री सत्यनारायण जी के मंदिर में दर्शन करने निश्चित रूप से जाते थे।


संयोगवश गाँव के मंदिर में जमात लेकर बैनाड़ा श्री कल्याण जी के महंत श्री सीताराम दास जी महाराज पधारे। महंत जी से श्री लक्ष्मीनारायण जी का नित्य मिलना प्रारंभ हुआ और परिचय पगाड़ता में बदल गई।


लक्ष्मीनारायण जी के चेहरे पर यदा- कदा झलक पडने वाली संतान विहीनता की पीड़ा को महंत श्री सीताराम जी ने देखा तो लक्ष्मीनारायण जी इसका कारण पूछा उन्होंने अपने मन की व्यथा प्रकट कर दी। बात सुनकर महन्त जी को खेद हुआ। महंत जी के हृदय की करूणा व सहानुभूति का दरिया फूट पड़ा उन्होंने श्री लक्ष्मीनारायण से कहा-निराश होने जैसी कोई वजह नहीं है, तुम्हारे पाँच पुत्र और एक पुत्री भी होगी। बढ़ती उम्र व ढलती जवानी का अनुमान लगाकर लक्ष्मीनारायण जी को महन्त श्री सीताराम जी के वरदान के फलीभूत होने का विश्वास नहीं हो रहा था। महन्त जी ने उनके मन के संशय को ताड़ लिया और बोले-"संतान प्राप्ति नि:संदेह होगी, पर मेरी एक शर्त है- उन छह संतानों में से एक को तुम्हें भगवान श्रीकल्याण जी महाराज को भेंट करना होगा।"